तैंतीस प्रतिशत
आरक्षण
गाँधी तुने भारत को तो
स्वतंत्र किया
पर बा क्या तुने नारी के
बारे में सोंचा
तू सीता बन पीछे पदचिन्हों
पर चलती रही
पर क्या पथदर्शक बन आगे
बढ़ाने का सोंचा
पचास बरसों की स्वतंत्रता
की सोंधी खुशबू
क्या हर एक के नस नस में
समा सकी
वही स्तर वही परतंत्रता का
आभास लिए
वही पिता से होती हुई पति
के घर की धूरी
बेटे के इर्द गिर्द घुमती
आकर खतम हुई
बिना सहारे निर्बल अबला सी हो परिभाषित
कमजोर ,असहाय दया की पात्र सी
आँकी गई
बा तुने कुछ कदम अकेले चलना सिखाया होता
कुछ साहस कुछ आत्मविस्वास जगाया होता
बहुत कुछ कर दिखाया हमनें
कुछ कदम चलकर भी बतलाया हमनें
फिर भी परतंत्र रहीं हम,अँगरेजों की न सही,
अपने इर्दगिर्द खिचीं सामाजिक परिधि की
कुछ मूक है, कुछ बेबाक
पर परतंत्रता की परिधि लाँघने का साहस नहीं
बा तू आई चली गई!
इंदिरा आई चली गई!
पर स्वतंत्रता अपरिभाषित रही !!
समाप्त