from the fountain of my creativity
Sunday, November 17, 2013
22.शहर
मैं गया था तुम्हारे शहर ,तुमसे मिलने
मगर तुम्हारे शहर का मकान ख़ाली पड़ा था
दरवाज़े और खिड़कियाँ सब बन्द पड़े थे
बस एक सन्नाटा ही था,जो दिवारों में सेंध लगा
मुझे तेरी चौखट से पलट कर लौटने न दिया
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