Thursday, September 1, 2016
33.रिश्तें
32.चाहत
31.ज़िन्दगी
Monday, August 29, 2016
30.रिश्तों की महाभारत
क्यों ??
केशव !!!
हर बार तुम्ही
गीता का उपदेश सुनाकर
करुक्षेत्र रचवाते हो ,
नहीं चाहिए ऐसी धरती
जहाँ तुम महाभारत करवाते हो |
रिश्तों की फिर द्युत- क्रीड़ा में
अपना सब कुछ हम हारे,
कल था जो सरल सहोदर अपना
युद्ध क्षेत्र में समक्ष खड़े |
मृत्युभूमि के इंद्रप्रस्थ पर ,
नित नूतन करतब दिखलाते हो
नहीं चाहिए ऐसी धरती,
जहाँ तुम महाभारत करवाते हो |
फिर अर्जुन ने गांडीव उठा कर
अपनों पर प्रहार किया
काल बना निरंकुश इतना
अपनों ने ,
अपनों का संहार किया
शांति दूत तुम बनो कन्हैया
क्यों !!
पश्चयाताप की अग्नि में हमे झुलसाते हो
नहीं चाहिए ऐसी धरती,
जहाँ तुम महाभारत करवाते हो |
अगर नहीं यह अपना सबकुछ
चक्रव्यूह क्यों रचता है ,
फिर क्यों हर बार कुरुक्षेत्र में
कोमल अभिमन्यु मरता है |
सूतपुत्र के कुल विराग पर
तुम क्यों धर्म वाण चलवाते हो
नहीं चाहिए ऐसी धरती,
जहाँ तुम महाभारत करवाते हो |
हैं अगर यह उद्घघोष विजय का
अश्रुधार क्यों बह निकले ,
अपनों के शव ले काँधें पर
आज युधिष्ठिर क्यों रोये |
है अगर ,अधर्म की पट्टी आँखों पर
उनको क्यों नहीं खुलवाते हो
नहीं चाहिए ऐसी धरती,
जहाँ तुम महाभारत करवाते हो |
सृजन किया जो तूने मानव
अहं स्वार्थ फिर क्यों डाला ,
काल रहा निरंकुश इतना
महाभारत ही रच डाला ?
हिय तेरा क्यों निष्ठुर इतना
मंद मंद मुस्काते हो
खंड विखंडित मनोदशा पर
फिर भी प्रहार करवाते हो |
रिश्तों की इस परिपाटी पर
एक बार फिर हमसब लहूलुहान हुए
जय पराजय की इस द्यूत- क्रीड़ा में
अपना सर्वस्व ही हार गए
बड़ा प्रश्न चिन्ह ये जीवन अपना
वानप्रस्थ का द्वार स्वतः दिखलाते हो
नहीं चाहिए ऐसी धरती,
जहाँ तुम महाभारत करवाते हो |
नहीं चाहिए ऐसी धरती,
जहाँ तुम महाभारत करवाते हो |
29.जिंदगी
जुम्विश (गति)