Sunday, January 27, 2013

21.उपरी मंजिल



http://www.youtube.com/watch?feature=player_detailpage&v=3POGRbSUPtY#t=60s

उपरी मंजिल

समय करवट बदलता  है
काल का पन्ना पलटता है
कई आहट सिढियॅो  से चढ़
उपरी मंजिल के दरवाजों पर
दस्तक सा देता है I
छत के शख्त दीवारों से
कुछ नए कोपल निकल आये
अमरबेल सीढियों से रेंगती
निचले दरवाजे तक जा पँहुची है I
अब हर कमरें में रौनक है
हर झरोखे में बेगाने का चेहरा है ,
यहाँ तक की मेहमानखाने में
अब किरायेदार रहते है I
पुराना पियानो ,टुटा फ्रेम
मेरे साथ तहखाने में सोता है
यहाँ बेफिक्र ख़ामोशी,मेरी बाँहों में सिमटा
मेरे कब्र पर जार-जार रोता है I