पिछले साल
कभी
बैठा करते थे
महफ़िल
ना सही ,टूटे पलंग के कोने पे
चंद
लाईनें मैं कहती ,तुम सुनते
तुम
बोलते, मैं देखती
चाँद
दस्तक देता
सूरज को बुला लाता था I
आज
फिर पन्नों कों पलटा मैंने
तल्खी
आवाज भी सहमती सी
खामोश
दरवाजो से गुजरती गई
कल
का चाँद अब तक
मेरी
खिङकी पें खङा
तेरे
आने की टोह में
मेरी
आँखों कों सुनता अब तक बैठा है II