from the fountain of my creativity
Thursday, September 1, 2016
33.रिश्तें
जरा सी छेद क्या हुई
सिक्कों के साथ रिश्तें भी गिड़ने लगे
बड़ी जद्दोजहत् की
हाथों से समेटा हमने
दुरुस्त करने की कोशिशें नाकाम की
लेकिन पायाब् में पैबंद नजर आने लगे I
32.चाहत
कहाँ चाहत थी अपनी क़ि ,
गंगा से अपना दामन भर लूँ
दो बूंदें खारे पानी की काफी है
तेरी फ़ुरक़त में जीने के लिए
31.ज़िन्दगी
जिंदगी
मैंने तुझको हर राह,हर गुलिस्तां में ढूँढा,
सुर्ख पत्तों की सरसराहट में
महसूस किया था तुमको |
था कहाँ इल्म मुझे,
मेरे दामन से तुम युहीं सरक जाओगी |
बस इतनी सी गुज़ारिश है ,
आयन्दा आना तो,
मेरे दरवाज़ों पर दस्तक् देना....
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