Thursday, August 25, 2022

58. परछाई

 कहां मेरे हाथों को थामे चलते थे तुम

अब तो पोरों से बहते खून भी
सर्द हो गए शायद
एक एहसास बचा रखा है
तेरे होने का अब तक
मेरी खामोशी में हर दिन
मुझको रूला जाता है
ना मिलू तुमसे
गुज़ारिश इतनी
दुआएँ तुमतक
उड़ कर भी पहुंच ही जाएगी
बोझिल भरे कुछ लम्हें
मुझे अक्सर रूला जाते हैं
अब तो किनारों पर
मैने मिट्टी के बांध बना रखे हैं
जब कभी गुजरोगे
मेरे रस्तों से कभी
धड़कते दिल को तसल्ली होगी
भूले से भी दरवाजों पर दस्तक मत देना
ये किनारे भी अक्सर टूट जाया करते हैं
है यकीन ,मेरे जाने पर मेरे कब्र पर
जार जार सिसकोगे शायद
मेरे कान हवाओं से हो कर गुजर जाएगी
मैं चली जाऊंगी
पीछे कहां कुछ छूटेगा
फिर तस्सली से खुद में
मुझ को तकना
मैं ना होंगी,मेरे जज़्बात भी मिट चुके होंगे
बस मेरी मिट्टी पर एक पेड़ लगा कर
वापस घर जाना

57. तू और मैं

 आओ चलें हम दरिया किनारे

पेड़ों की झुरमुट ,ठंडी हवाएं
कांधे पे तेरे सर रख के बैठू
आँचल में अपने तेरे मोती संजो लूं
तुम अपनी कहो, मैं कहूं

कहती है दुनियां कहने दो उनको

तुम ना सुनो मैं सुनूं

हाथों में हाथों को डाले हुए हम

आओ चले फिर चलें *2
कल जो भी बीता ,अच्छा ,बुरा था
उनकी फिकर ना करो
जो जिया लिया हैं सबके लिए था
अपने लिए तुम जियो *2

जैसे भी तुम हो मेरे लिए हो

बस तेरी सुनूं तुम कहो

रास्ता कठिन हैं जाना जहां हैं

कुछ पल ठहर के चलो

थोड़ी तसल्ली से अपनी भी सुनलो

औरों की तुम ना सुनो

ओ जो भी बैठा हैं दूर हमसे

बस उसको ही अपनी कहो *2
तेरी सुनेगा,तुम पर हँसेगा
तुम को उठाके ,दिल से लगा के
तेरी आंखों के मोती गिन गिन चुनेगा
फिर हम ना होंगे ना तुम रहोगे
बस ओ कुछ रचेगा नया *2

बस इतनी गुज़ारिश हैं इस जहां से

थोड़ी तसल्ली से जाने दे मुझको

जाकर मिलेंगे तो पूछ लेंगे

जो कुछ मिला था क्यों कर मिला था

अपना किया था या

थी तेरी लीला

ये तो बताते चलो *2

56.तुम

 तुम हम में, तुम में, सब में शामिल हो

नेत्र खुले तो धुंधले लगते हो
अंतर्मन में तुम संपूर्ण कृष्ण हो
तुम राधा के आँचल में छुप कर
क्यो केशव करतव करते हो
ध्यान लगाएं कब से बैठे हैं
आओ हम सब में तुम छुप जाओ…
घटा घिरी ,बादल गरजे हैं
अश्रुधार फिर बह निकले हैं
स्नेह भरा आँचल सुना है
रित्त परे मन को भर जाओ
आओ हम सब में…..
खुले पलक, बोझिल दिखते हैं
लेकिन आँखों में नींद कहाँ है
भरे नयन में धूमिल छवि है
नींद में तुम दस्तक दे जाओ
आओ….
तुम तो सोये चिर निद्रा में
मैं जागी कितनी रातों से
हृदय बिछे हैं राह में कब से
कान लगे हैं घर के पल्लों पर
जब भी खड़के घर के सांकल
मन दौड़ पड़ा तुमको छूने को
तुम आये थे,आँगन से हो कर
सूखे पत्तों को अभी सुना है
फिर देखा तकिये के नीचे
स्नेह के तारें छोड़ गए थे

टिम टिम करते स्नेह के तारे

55.मेरे पापा

 ऐ घन फिर क्यो आज लगे बरसने

थम भी जाओ
मेरा अपना मुझमें ही है
क्यो वियोग की व्यथा
क्यो विरह की वेदना
क्यो ये सन्नाटा फिर आज डराता
जब तुम यहीं कहीं
फिर तेरे ना होने की सजा
क्यो मुझे सताता
दृढ़ प्रतिज्ञ हूँ
अश्रु कण फिर नही बहेंगे
तुमको,आज ना कल खुद में
ढूंढ ही लेंगे
धीर धरो मन
व्याकुल क्यो हो
शून्य नही
तुम सर्व व्याप्त हो।

54.फिर एक बार सही

 सब तो हैं,तुम कहाँ हो ?

तुम्हारी मुस्कुराहट पीछा करती है
घर का हर कोना छान मारा
सड़क पर हर छतरी के नीचे देखा
नही थे तुम ।
कहाँ गए,क्यो गए
बोले भी नहीं कि आता हूँ
ऐसे कोई जाता है क्या
सब तुम्हारा रास्ता तक रहे
तास की पत्तियाँ युही बिखड़ी पडी हैं।
तुम मेरे साथ हो ना?
तुम्हे कोई अब परेशान नही करेगा
तुम्हारे हारने पर
मैने सबको डाँट के अभी बिठाया है ।
आ जाओ
सब खाली लगता
सन्नाटा ,
प्लीज फिर एक बार
चहक कर पुकार लो
नाराज हो कर चुप्पी सही नही
आ जाओ ।
फिर एक बार सही,
कह कर जाने
के लिए आ जाओ ।
अबके जाने ना दूँगी
कस के थामे रखूँगी
अगर ज़िद पर आ गए तुम
तो मैं भी तेरे संग हो लूँगी

53.चलो चलें

 चलो धरा तुम आज गगन में

स्वर्ण किरण को छू के आए
लिए हाथ में भर भर पिचकारी
तपते सूरज को शीतल कर जाये
मैं भी आती हूँ तेरे पीछे
मेरे संग भी चंद सितारे
फिर टाकेंगे मोती इनमें
चम चम करते प्यारे प्यारे
देर हुईं गर घर आने में
डर कैसा संग टिम टिम जुगनू सारे

52.नेमत

 बड़ी मिन्नतें की

ख़ुदा मेरे दामन में चंद सितारे देना
ऊपर बाले की नेमत
मेरे आँचल में चाँद आ ठहरा

इतनी भी नजरें इनायत
मत कर ये रहमतें ख़ुदाया मेरे
क्यो करे शुक्रिया ,
सब तेरा है,तुझ को ही मुबारक़ कर दूं
बस इतनी  सी गुज़ारिश हैं
जो कुछ भी दिया तुमने
बस उन पें रहमें करम बनाये रखना
मैं तो उस पायदान पे हूँ
ना जाने कब खाख में मिल जाएंगे
तू था,है और साथ रहेगा सबके।।