ऐ घन फिर क्यो आज लगे बरसने
थम भी जाओमेरा अपना मुझमें ही है
क्यो वियोग की व्यथा
क्यो विरह की वेदना
क्यो ये सन्नाटा फिर आज डराता
जब तुम यहीं कहीं
फिर तेरे ना होने की सजा
क्यो मुझे सताता
दृढ़ प्रतिज्ञ हूँ
अश्रु कण फिर नही बहेंगे
तुमको,आज ना कल खुद में
ढूंढ ही लेंगे
धीर धरो मन
व्याकुल क्यो हो
शून्य नही
तुम सर्व व्याप्त हो।
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