Thursday, August 25, 2022

48.चिठ्ठी

 शायद तुम कुछ आगे निकल गए

या फिर कही पीछे सँकरे गलियारों में खो गए
कुछ तो हुआ ,जो हम थे वो ना रहे
शिकवे शिकायतें तो ठीक
लेकिन जो दरमियाँ था वो क्यो चूक गए
तमान कोशिशें हमने की,
शायद तुमने भी की होगी
क्यो रहा वक़्त हम पर भारी
शायद हम वक्त से ना लड़ सके
इतने तो कमजोर ना हम थे,
तुम्हारे कंधे भी मजबूत हुआ करते थे
समय का तकाज़ा देखो,
सब कुछ तो ज्यों का त्यों रहा
हम ही तुम्हारे कंधों से फिसल गए
बड़ा फक्र हुआ करता था
तुम मेरे साथ साथ पगडंडियों पर चलते थे
मेरे पैर अब तक तुम्हे ढूढते दौड़ते है
तुम्हारे कदम मेरे साथ चलने को थक गए
अब तक हम दोनों के अंदर
पहाड़ों का शेष दबा पड़ा है शायद
कुरेदा, तो मेरी उंगलिओं में
फूलों की खुशबु अब तक बची पड़ी है
घंटियों की आवाज क्या तुम्हें सुनाई देती है?
कल रात सिरहाने में मैंने
चंद पीले लिफ़ाफ़े देखे
कुछ पुरानी चिठ्ठियां थी
लिखावट तुम्हारी थी
मैंने उसे फिर से तुम्हारे सामने वाले दराज में रख दिये हैं
शायद फिर तुम उन पीले पन्नो पर
कुछ जिंदगी लिखोगे
पन्ने बस चंद खाली पड़े है
उनपर फ़लसफ़ा लिख कर पोस्ट जल्दी करना
पता नहीं कल मैं कहीं और आगे ना निकल जाऊ।

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