ध्वज
कर्मभूमि यह मृत्युभूमि है ,
कहाँ कभी किसको छोड़ेगी I
जीवन सरि,
चंचल उद्वेलित,
सतत नित्य युहीं दौड़ेगी I
कुछ पल तो आ अब शीश धर लें
गौरव ध्वजा फ़हरा रहा है I
सद्गति
संघर्ष समर्पण का यह उर्ध्व
केतु ,
सपूतों का दर्प दरसा रहा है
I
स्वतंत्र भू का अभिमान यह है
,
उस पर न्योछावर
नमन उसका ,
हाथ जोड़े, शीश नत,मन
समर्पित
प्राण की अंतः शिला पर
सर्वोपरि धवज
लहरा रहा है I
स्वतंत्र है तू ,
गणतंत्र भू की I
क्या ध्वजा तेरा नहीं है?
या स्वतंत्रता के आत्ममद में,
तु निरि क्या दिगभ्रमित है ?
गाँधी संजयो,
इस धरा की,
निष्पंद होकर कर अवज्ञा ,
बस में नहीं क्या इन्द्रियां हैं ?
तटस्थ बैठी है सब से
उद्दिग्न भला क्यों मन तेरा है
चाहतों का स्त्रोत मानस ,
मरुस्थल सा जैसा सुख पड़ा है I
या यों कहो
ह्रदयस्थित अज्ञान समुद्भव,
बेड़ियों से जकरा पड़ा है I
क्या कभी देखा है तुमने ,
मंदिरों में ईश बैठे I
या किसी मस्जिद के प्रांगन ,
अल्लाह को सेज लेटे I
है कहीं अल्लाह जग में ,
ईश को गर तुमने देखा ,
होगा स्वरुप सनातन दिव्य
कोइ
बापू ,
सा कोई अनन्तवीर्य शख्स
होगा I
कामनाओं से विनिवृत होकर ,
सुख-दुःख द्वंदों से
विमुक्त होकर ,
था किया अर्पण सभी कुछ
दैवी संपद गाँधी सा होगा I
कर नमन ,
यह निज धर्म तेरा ,
अन्यथा
देश कर्ज तुझ पर खुद हँसेगा I
हर दिन प्रातः लाल रक्तिम ,
स्वतः क्षितिज पर आती रहेगी I
साँझ ढलते तिमिर धन में ,
छिप निशा में सो
रहेगी I
सिद्धि –असिद्धि द्वंद जीवन गति है ,
नित्य अवध्य चलती रहेगी I
कुछ क्षण लुटा गर देश पर जो ,
काल चक्र
क्याँ अविरुद्ध होगी ?
व्यर्थ दिनचर्या में पड़कर ,
स्वर्णिम पलों से तू छिटकती I
मातृभूमि यह देश
तेरा,
निज कर्त्तव्य से तू क्यों विमुखती I
हाय री तु मृदु,कंचन सी काया
अपराधबोध क्यों सर तुं सर है लेती ,
तू है जननी,भू,जननी है सबकी
उस धरा को क्यों तू है तजती I
बाँटतीं चतुर्दिक ज्ञान
ज्योति ,
निज रही क्या मूढ़ अबतक ?
कर सुध,
वो बेसुध पगली,
ये स्वर्ण माँटी तुझको तक
रहा है
अपनी विभा प्रबुद्ध कर तु ,
अन्यथा,
तेरा अन्तमॅन तुझको तज रहा
है I
उठ,
खोल,
ज्ञान चक्षु शुभ्र मन का,
तेरा देशधर्म,
तुझको है निभाना I
शैल शिखरों पर सुशोभित ,
शीर्ष धवज,
पर है तुझको शीश नवना II
समाप्त
१५ अगस्त स्वतंत्रता कि ६५
वर्षगाँठ..... हिनदुस्तानीयों क सबसे पावक त्योहार .....
लेकिन लोग इसे त्योहार कम
छुट्टी के रुप में अधिक मनातें हैं I स्वतंत्रता के स्वतः मद में हम सबों को लगने लगा है कि ये
स्वतंत्रता बस हमें युहीं मिल गयी है I हम शायद भुलते जा रहें हैं कि स्वतंत्र भारत को पाने के
लिये और इसे इस मुकाम तक पहुँचाने के लिये देशभक्तों ने क्या क्या बलिदान नहीं
कियें हैंI खाश कर दुःख तब और भी ज्यादा होता है जब कुछ देशवासी पूरे दिन की छुट्टी से
१५-२० मिनट का भी समय भारतवर्ष के घ्वज के समग्र शीश झुकाने के लिये नहीं निकाल
पातें . खाश कर महिलाएं….क्या एक दिन भी
अपने अपने दिनचर्या के असंख्य पलों से हम कुछ मिनट अपने देश के लिये नहीं निकाल
सकतें ???????