Wednesday, December 16, 2015

26.मुझे साथ लिए चल


मुझे साथ लिए चल
ठहर जा भोर की किरणें ,
मुझे साथ लिए चल
थक के सफर में, रात कहाँ सोयी मैं
तुमने बिस्तर के सिलबटो में,
ओस की बूंदों को महसूस किया था की नहीं
सियाही मेरी आँखों में जो तुमने पढ़ा,
ओ बेमानी नहीं मेरा सपना था
डर है मुझे नींद ना आ जाए कहीं ,
ले चलो साथ, शहर साथ मेरे चलता रहे
जब कभी साथ ना सांस ना ये शहर होगा
तू मुझे छोङ उसी चौराहे पर ,
फिर पलट कर ना एक बार मुझको तकना
मैं उसी रात मेरे सपनो को,
स्याह आकाश के सितारों में पिरोऊँगी
फिर हलके हाथों की थपकी दे कर,
रात के सिरहाने में सो जाउंगी II