Thursday, August 25, 2022

49.वायरस

 ये तो तय हैं कमबख्त ज़ालिम से मिलने बाजार नही जाएंगे

मगर ये ख़ौफ़ दिन रात सताता रहता,
पता नहीं कब वो दबे पांव ,बिना दस्तक़ के मेरे घर बेख़ौफ़ चला आयेगा।(doctor in my house)
अपने हाथों को बड़ी शिद्दत से संभाला मैंने,
अब तो लकीरें भी धुँधली सी नजर आती है(hand wash)
घर के शीशों पर भी एक दीवार बना रखा है
सामने  खिड़की में खड़ा,अपना भी अनजान नजर आता है(social distancing)
बातें करती हूँ सब से ,अब सन्नाटों से डर कैसा
शीशे से फर्श में मैं चार नजर आती हूँ(cleanliness)
ओ जो दीवारों से आतीं हैं मेरे अपनों की बातें
मुझको फुसलाने के किस्से हर रोज़ सुनाया करती
दिन गुजरा हैं
रातें भी गुजर जाऐंगी

फिर अपनों के ठहाकों से

शुरुरें शाम सुधर जाएगी

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