Thursday, August 25, 2022

57. तू और मैं

 आओ चलें हम दरिया किनारे

पेड़ों की झुरमुट ,ठंडी हवाएं
कांधे पे तेरे सर रख के बैठू
आँचल में अपने तेरे मोती संजो लूं
तुम अपनी कहो, मैं कहूं

कहती है दुनियां कहने दो उनको

तुम ना सुनो मैं सुनूं

हाथों में हाथों को डाले हुए हम

आओ चले फिर चलें *2
कल जो भी बीता ,अच्छा ,बुरा था
उनकी फिकर ना करो
जो जिया लिया हैं सबके लिए था
अपने लिए तुम जियो *2

जैसे भी तुम हो मेरे लिए हो

बस तेरी सुनूं तुम कहो

रास्ता कठिन हैं जाना जहां हैं

कुछ पल ठहर के चलो

थोड़ी तसल्ली से अपनी भी सुनलो

औरों की तुम ना सुनो

ओ जो भी बैठा हैं दूर हमसे

बस उसको ही अपनी कहो *2
तेरी सुनेगा,तुम पर हँसेगा
तुम को उठाके ,दिल से लगा के
तेरी आंखों के मोती गिन गिन चुनेगा
फिर हम ना होंगे ना तुम रहोगे
बस ओ कुछ रचेगा नया *2

बस इतनी गुज़ारिश हैं इस जहां से

थोड़ी तसल्ली से जाने दे मुझको

जाकर मिलेंगे तो पूछ लेंगे

जो कुछ मिला था क्यों कर मिला था

अपना किया था या

थी तेरी लीला

ये तो बताते चलो *2

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