Thursday, August 25, 2022

56.तुम

 तुम हम में, तुम में, सब में शामिल हो

नेत्र खुले तो धुंधले लगते हो
अंतर्मन में तुम संपूर्ण कृष्ण हो
तुम राधा के आँचल में छुप कर
क्यो केशव करतव करते हो
ध्यान लगाएं कब से बैठे हैं
आओ हम सब में तुम छुप जाओ…
घटा घिरी ,बादल गरजे हैं
अश्रुधार फिर बह निकले हैं
स्नेह भरा आँचल सुना है
रित्त परे मन को भर जाओ
आओ हम सब में…..
खुले पलक, बोझिल दिखते हैं
लेकिन आँखों में नींद कहाँ है
भरे नयन में धूमिल छवि है
नींद में तुम दस्तक दे जाओ
आओ….
तुम तो सोये चिर निद्रा में
मैं जागी कितनी रातों से
हृदय बिछे हैं राह में कब से
कान लगे हैं घर के पल्लों पर
जब भी खड़के घर के सांकल
मन दौड़ पड़ा तुमको छूने को
तुम आये थे,आँगन से हो कर
सूखे पत्तों को अभी सुना है
फिर देखा तकिये के नीचे
स्नेह के तारें छोड़ गए थे

टिम टिम करते स्नेह के तारे

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